देश में जबसे कोरोना के मामले बढ़ने शुरू सरकारों ने अपने आप को साफ सुथरा दिखने और व्यवस्था को दुरुस्त दिखाने के लिए आकड़ो का खेल शुरू कर दिया है। सभी सरकारों ने अपने यहाँ के आकड़े को छुपा कर अपनी छवि को साफ रखने का हर प्रयास किया है। लेकिन वो कहावत है न की सच्चाई ज्यादा देर तक नहीं छुपता है और एक ने एक दिन उसकी सच्चाई सामने आती ही है।
ऐसे में जो आकड़े सरकार छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी उसका सच और उन आकड़ो की गवाही उस राज्य के हर शमशान घाट दे रहे है। या तो समुन्द्र में तैरती लाशें हो व समुन्द्र किनारे दफनाई लाशें। ये सभी सरकार के आकड़ो पर सवाल खड़े कर रहे है।नदियों में तैरती लाशो का बवाल अभी खत्म नहीं हुआ था ऐसे में बक्सर से कोरोना से मरे लगो के आकड़ो के खेल में झोल देखते हुए पटना हाई कोर्ट ने अपना कड़ा रुख अख्तियार किया है।
बिहार के बक्सर गंगा नदी में लाशें मिलना इस का प्रमाण है की लोगो की मृत्यु के आकड़े सरकार जो दे रही है सच नहीं है।
हालिया खबर की बात करे तो पटना हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान सरकार द्वारा मृत्यु के आकड़े पर एक रिपोर्ट रखी थी जिसमे आकड़े चौकाने वाले थे। मुख्य सचिव की रिपोर्ट और पटना प्रमंडलीय आयुक्त ने अपनी अपनी रिपोर्ट कोर्ट में दी जिसमे इन दोनों के आकड़ो में जमीं आसमान का अंतर् था।
मुख्य सचिव ने अपने रोर्ट में लिखा था की 1 मार्च से 13 मई के बीच बक्सर में सिर्फ 6 लोगो की जान गयी है लेकिन जब प्रमंडलीय आयुक्त की रिपोर्ट खुली तो उसके मुताबिक 789 लाशें जली है। इन दोनों रिपोर्ट को देखते हुए चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस कुमार की बेंच इस रिपोर्ट को तर्क हिन् बता दिया।हाई कोर्ट ने पूछा की बक्सर में 1 मार्च से 13 मई तक कितने मरीज एक्टिव रहे और कितनो की मौत हुई इसकी पूरी जानकारी के साथ रिपोर्ट 19 मई तक कोर्ट में सौपे।