ताजमहल जो पूरी शान से उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में खड़ा है। इसकी सुर्ख-सफेद संगमरमरी ख़ूबसूरती पूरी दुनिया को आकर्षित करती रही है। इसे सदियों से “मोहब्बत क़े निशानी” तौर पर भी जाना जाता है। एक दूसरे के इश्क में पड़े प्रेमी जोड़े भी अपने प्यार कों ताज की तरह अमर कर जाने की कसमें खाते रहे है लेकिन पिछले कुछ समय से “ताजमहल” किस तरह के विवादों में घीर आया है। पिछले दिनों के इलाहाबाद हाई कोर्ट में इसके बंद कमरों को खुलवाने के लिए याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि कोर्ट भारतीय पुरातत्व विभाग को बंद दरवाजे खोलने के आदेश दे। इसके पीछे की जो मनसा बताई जा रही है. वों यें पता लगाने को लेकर है कि क्या वाकई ताज के बंद पड़े कमरों में मूर्तियां मौजूद है। ताजमहल की इमारत को लेकर भी चर्चाएं रह चुके हैं. कि वो दरअसल किसी पूजा स्थल का ही ढांचा है। हालांकि इससे जुड़े कोई साक्ष्य या सबूत कभी दुनिया के सामने नहीं आ सके है। यहां तक की ख़ुद साल 2015 में मोदी सरकार भी इस बात को लोकसभा में बता चुकी हैं कि ताजमहल में किसी तरह के मंदिर का कोई सबूत यह चिन्ह मौजूद नहीं है।
ताजमहल विवाद क्या है इतिहास ? मोदी सरकार भी कह चुकी है मंदिर के सबूत नहीं !
इसके बावजूद मानने वालों को तब का एक ऐसा भी है जों ताजमहल को तेजो महल कह कर बुलाता है। हालांकि इस तरह के विचार यह धारणा आदि को देश के सांसद के साथ-साथ तमाम इतिहासकार भी खारिज ही करते रहे हैं. उसके बावजूद इससे जुड़े विवाद और चर्चाएं अपनी जगह कायम है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस सिलसिले में साल 2015 में भी 7 याचिकाकर्ताओं नें आगरा सिविल जज की अदालत में एक याचिका दाखिल कर हिंदू श्रद्धालुओं को ताजमहल में पूजा-उपासना आदि करने की मांग की थी। उस याचिका में भी ताजमहल के तेजो महालय होने का दावा किया गया था हालांकि उस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस पर स्पष्टीकरण देते हुए साल 2015 में ही संस्कृति मंत्रालय नें लोकसभा को यह जानकारी दी थी कि वहां पर मंदिर से जुड़े कोई भी सबूत मौजूद नहीं है।