आज कल यें चर्चा आम है कि मोबाइल लैपटॉप फुल चार्ज कर लो इनवाइटर हो तो उसको भी चार्ज कर लो।ना जाने कब बिजली चली जाए पावर कट की समस्या घरों से लेकर खबरों तक आम है। तो साथ ही यें बात भी आम है, कि इतने दिन का कोयला बचा है उतने दिन का कोयला बचा है। कुछ लोग इसे सामान्य रूप से ले रहे हैं, तो कुछ लोग इसे गंभीरता से ले रहे हैं। इसके साथ ही कुछ पैसेंजर ट्रेनों को भी रद्द किया गया है, तर्क दिया गया है कि कोयला ले जा रही मालगाड़ी यों के लिए रुट खाली करना है। 12 राज्यों में बिजली संकट की खबरों से मीडिया फटा पड़ा है, तों वही अब राज्य सरकारों ने भी पैनिक बटन दबाना शुरू कर दिया है। हालांकि केंद्र सरकार के पास अपने तर्क है, कहते हैं कि सब कुछ कंट्रोल में है। तो चलिए जानते हैं, इस कोयला संकट की आखिर हकीकत क्या है वजह क्या है और कितना बड़ा है यह संकट।
कितना बड़ा है यें संकट क्या है वजह जाने सब कुछ
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सबसे पहले तो यें समझते हैं कि कोयला संकट और बिजली संकट का आपस में संबंध क्या है। दरअसल देश में ज्यादा बिजली कोयले से चलने वाले पावर प्लांट से ही उत्पन्न होती है, ऐसे पावर प्लांट की बिजली बनाने की क्षमता फ़िलहाल 2 लाख 4 हजार 80 मेगा वाट है। यह कुल बिजली उत्पादन का 51.1 प्रतिशत है, अब समझते हैं कि देश में बिजली की मांग कितनी है? तो पावर मिनिस्ट्री के मुताबिक 26 अप्रैल को बिजली की मांग 201.066 गीगा वाट रही जबकि गुरुवार तक यह 204.653 ईगा वाट तक पहुंच गई। पिछले साल सबसे ज्यादा डिमांड 200.53 गीगा वाट रही मंत्रालय का कहना है कि मई-जून में मांग 215-216 ईगा वाट तक पहुंच सकती है। आप इस रिपोर्ट में बिजली की डिमांड सप्लाइको गीगा वाट यूनिट में ही सुनेंगे, तों समझ लीजिए 1 गीगा वाट होता है 1 हजार मेगा वाट और 1 मेगा वाट का मतलब होता है, 1 अरब वार्ट मतलब अगर आपके पास 1 मेगा वार्ट बिजली है तो आप उससे 100 वार्ट वाले 1 करोड़ बल्ब जला सकते है। डिमांड आपने समझ लिया अब सप्लाई में कमी का कारण क्या है? यें भी समझते हैं। दरअसल बढ़ती हुई गर्मी के साथ-साथ इस बार पूरे देश की सभी औद्योगिक इकाइयां कोविड पूर्व के स्तर पर काम कर रही हैं, जिससे पिछले साल के मुकाबले इस बार बिजली की खपत कई गुना बड़ी हुई नजर आ रही है। देश के हर पावर प्लांट पर दबाव बना हुआ है, कोयले की बढ़ती खपत को देखते हुए कोल इंडिया ने भी कोयले का उत्पादन बढ़ा दिया है।
कोयले से बिजली का क्या कनेक्शन है आइए जानते हैं?
बीते वर्ष की तुलना में इस बार 14 फ़ीसदी ज्यादा कोयले का उत्पादन हो रहा है, इसके बाद भी बिजली संयंत्र मांग कर रहे हैं कि उनके पास कोयला बहुत कम है। आज सभी बिजली संयंत्रों के पास कोयले का स्टॉक मौजूद है, जितना उनके पास होना चाहिए। लेकिन फिर भी कोयला संकट सरकार क़े नियमों के चलते बना हुआ है, समझते हैं कैसे? दरअसल पिछले साल हुए संकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने नियमों में फेरबदल कर दिया था। नए नियमों के मुताबिक सभी पावर प्लांट्स को ज्यादा स्टॉक रखने के निर्देश दिए गए थे, ताकि बरसात में कोई दिक्कत ना हो। आज सभी प्लांट्स में कोयला स्टॉक इस लिए कम नजर आ रहा है, क्योंकि सरकार ने स्टॉक रखने की सीमा को पिछले साल के मुकाबले बढ़ा दिया है। और जितना कोयला संयंत्रों में पहुंचना था, उतना अभी तक नहीं पहुंचा है। के अलावा कुछ और कारण भी है? जैसे रूस यूक्रेन युद्ध का प्रभाव। देश के पावर प्लांट अपनी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए निम्न अस्तर के कोयले का आयात भी करते हैं, रूप से आया होता था अब नहीं हो रहा और पहले का आर्डर फिलहाल बंदर गांवो में अटका हुआ है। बाकी अन्य देशों में कोई ना महंगा हुआ है इस लिए आयात भी बंद है, इसके अलावा इस बार जितनी गर्मी बढ़ी है कोयले की डिमांड भी उतनी ही बढ़ी है मतलब 30 फीसदी तक डिमांड बढ़ गई है लेकिन राज्यों के पास फिलहाल पर्याप्त बिजली हैं।
ये निम्न राज्य कोयला बिल बकाया…?
एक आवर में डिमांड बढ़ जाती है, तब राज्य पावर सेडिंग करने का विकल्प चुनते हैं। जबकि राज्य बिजली खरीद भी सकते हैं, जो कि उपलब्ध भी है लेकिन राज्य ऐसा नहीं कर रहे हैं क्योंकि बिजली खरीदने पर अतिरिक्त पैसा भी देना होगा। तो कई राज्य पहले से बिजली का बकाया नहीं चुका सके है, कोयला बिल की बकाया की लिस्ट देखने तों काफी कुछ स्पष्ट हो जाता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र 2 हजार 600 वार्ट पश्चिम बंगाल 15 हजार से ज्यादा झारखंड 1 हजार से ज्यादा तमिल नाडु 829 से ज्यादा मध्य प्रदेश 531 से ज्यादा राजस्थान 429 से ज्यादा मध्य प्रदेश 271 उत्तर प्रदेश 213 से ज्यादा छत्तीसगढ़ 202 से ज्यादा और कर्नाटक 134 से ज्यादा यें जो मैंने आपको आंकड़े बताएं है, यें करोड़ रुपए में है। तों इतने करोड़ रुपए का कोयला अभी भी बकाया है राज्यों का।