समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) पर क्या हैं सुप्रीम कोर्ट का फैसला ?

Same Sex Marriage पर फैसला 

सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर को समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने पर फैसला दिया – सुप्रीम कोर्ट के पांच जजो के संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को मौलिक अधिकार की मान्यता देने से इंकार कर दिया लेकिन सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह को अवैध मानने से इंकार कर दिया l सुप्रीम कोर्ट का मानना है की समलैंगिक विवाह पर कानून बनाना संसद और विधानसभा का काम हैं I

Same Sex Marriage

न्यायालय के सामने क्या है विवाद ?

7 सितंबर 2018 को नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को समाप्त करने का फैसला किया , इससे भारत में समलैंगिक जोड़ों का साथ रहना कानूनी तौर पर अपराध की श्रेणी से बाहर हो गया और समलैंगिक लोगो को कानूनी तौर पर साथ रहने का अधिकार मिला I

लेकिन इस फैसले के बाद भी समलैंगिक जोड़ों के Same Sex Marriage को मान्यता नहीं मिला , समलैंगिक जोड़े बच्चे गोद नहीं ले सकते , विरासत का अधिकार नहीं मिलता ,सरोगेसी नहीं करा सकते तथा पेंशन का लाभ नहीं ले सकते l इसी विवाद को समलैंगिक जोड़ों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा गया l

क्या है सुप्रीम कोर्ट की समस्या ?

भारत में विवाह को पंजीकृत करने के लिए 2 तरीके हैं जिसमें एक धार्मिक कानूनो द्वारा तथा विशेष विवाह अधिनियम 1954 (अंर्तधार्मिक तथा अंतर्जातीय विवाह) हैं लेकिन विशेष विवाह अधिनियम 1954 के धारा 4(c) में पुरुष तथा महिला के विवाह को ही मान्यता देने की बात कही गई है I इसी लिया समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को विशेष विवाह अधिनियम के तहत मान्यता नहीं दी जा सकती हैं I

सुप्रीम कोर्ट का फैसला –

सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों ( सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, संजय किशन कौल, रवींद्र भट्ट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा ) के पीठ ने 3 : 2 के मत से समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) पर फैसला दिया l

3 : 2 से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इंकार कर दिया सुप्रीम कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम 1954 में बदलाव नहीं किया तथा समलैंगिक विवाह पर कानून बनाने का अधिकार संसद तथा विधानसभा को सौपा।

बहुमत का निर्णय 

बहुमत में 3 जज रवींद्र भट्ट , हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा ने फैसला दिया की –

विवाह का अधिकार कानूनी अधिकार नहीं है I

समलैंगिक जोड़ों को साथ रहने का अधिकार है लेकिन संबंध की मान्यता का अधिकार नहीं है I

समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार नहीं है तथा केंद्र सरकार इस संबंध में समिति का गठन करे l

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अल्पमत का फैसला 

अल्पमत का फैसला 2 जज सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल ने दिया –

विवाह का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है l

समलैंगिकता कोई शहरी अवधारणा नहीं है I

समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त रूप से बच्चा गोद लेने का अधिकार होना चाहिए l

मुख्य न्यायाधीश ने क्या कहा ?

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा  ” होमोसेक्शुअल लोगों को जो वैवाहिक अधिकार मिलता हैं वही अधिकार समलैंगिक लोगों को भी मिलना चाहिए l समलैंगिक लोगों को ये अधिकार नहीं मिलता तो ये मौलिक अधिकार का हनन माना जाएगा l”

Same Sex Marriage

” विवाह के अधिकार में संशोधन का अधिकार विधायिका के पास हैं लेकिन LGBTQ+ लोगों के पास पार्टनर चुनने तथा साथ रहने का अधिकार है और सरकार को उन्हें दिए जाने वाले अधिकारों की पहचान करनी चाहिए , ताकि समलैंगिक जोड़े एक साथ बिना परेशानी के रह सके l ”

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