जी हां एक ऐसी कहानी है जिस पर शानदार फिल्म सकती क्योंकि इस कहानी में जासूसी पर फिल्म बनने के सारे रहस्य-रोमांच मौजूद है। किसी भी मसाला मूवी के सारे एलिमेंट क्योंकि एक शख्स ने दावा किया है कि वह जासूस था और पाकिस्तान में उसने 2 बड़े ऑपरेशंस में हिस्सा लिया था। लेकिन साल 1976 में तीसरे मिशन के दौरान पकड़ लिया गया जिसके बाद लंबे समय तक जेल काटनी पड़ी। वहां वें 13 साल तक जेल में रहा लेकिन जब सजा पूरी करने के बाद वह अपने वतन हिंदुस्तान लौटा तो भारत सरकार ने उसे पहचानने से ही इंकार कर दिया। किसी भी आधिकारिक रिकॉर्ड में उसका नाम तक मौजूद नहीं था।
जस्टिस एस रविंद्र भट्ट और सीजीआई आई यू यू ललित नें दी बड़ी राहत जानिया क्या…?
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भारत आने के करीब 30 साल बाद और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इस पूर्व जासूस को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। राजस्थान के कोटा के रहने वाले हैं और अब 75 साल से ज्यादा हो चुके शख्स को अब इंसाफ मिला है। सीजीआई आई यू यू ललित और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट की बेंच ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि इस पूर्व जासूस को 10 लाख रूपये का भुगतान किया जाये। महमूद अंसारी के मुताबिक 1966 में उसकी नौकरी डाक विभाग ज्वाइन करने के बाद उसे स्पेशल ब्यूरो ऑफ़ इंटेलिजेंस ने जासूसी के लिए चुना।
अंसारी के दावे के मुताबिक वह पाकिस्तान में दो सीक्रेट मिशन में शामिल रहे
एडवोकेट समर विजय के जरिए दाखिल की गई याचिका के मुताबिक जून 1974 में उन्हें स्पेशल ब्यूरो ऑफ़ इंटेलिजेंस की तरफ से देश के लिए सीक्रेट ऑपरेशन चलाने की पेशकश की गई। जिसे महमूद अंसारी ने स्वीकार कर लिया और उन्होंने तय शर्तों के मुताबिक डाक विभाग से रिक्वेस्ट भी कि जिसको मंजूर कर लिया गया और उन्हें विभाग की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया। पिटिशन के मुताबिक अंसारी को पाकिस्तान में एक खास मिशन को पूरा करना था इस मिशन को अंजाम देने की जिम्मेदारी अंसारी के ऊपर थी। लगातार एक के बाद एक दो मिशन को कामयाब करने के बाद ज़ब वो तीसरे मिशन में जुटे तो पाकिस्तान को उनके ऊपर शक हो गया। इस तीसरे मिशन के दौरान पाकिस्तान रेंजर्स ने उन्हें पहचान लिया और 23 दिसंबर 1976 को उन्हें ने गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया।
वतन वापसी के 30 साल बाद अब कोर्ट ने सरकार को अंसारी कों 10 लाख रुपए देने का आदेश दिया
पाकिस्तान में उनके खिलाफ ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट के तहत मुकदमा चला जिसमें कोर्ट ने उन्हें 14 साल की कैद की सजा सुनाई। 14 साल तक जेल में रहने के दौरान अंसारी ने जेल से ही डाक विभाग को पत्र लिखा और उसमें उन्होंने बताया कि वह भी पाकिस्तान में कैद हैं और उनकी छुट्टी बढ़ा दी जाये। खत में उन्होंने यह भी गुहार लगाई कि उनकी गैर हाजरी को ड्यूटी से जानबूझकर गैर हाजिर होने ना माना जाये। उनका दावा है कि विभाग ने 31 जुलाई 1980 को बिना किसी पक्ष के सुने उन्हें बर्खास्त कर दिया और उसके बाद उनका भुगतान बंद कर दिया। जिसके बाद वह पाकिस्तान से जब लौटे उन्होंने कानूनी लड़ाई की सोची और एक-एक करके सभी सबूत जुटाकर के सुप्रीम कोर्ट तक उन्होंने करीब 30 साल लड़ाई लड़ी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए सरकार को 10 लाख रुपए के भुगतान का आदेश दिया है।