भले ही महंगाई चर-चर कर आम आदमी का बजट चकनाचूर कर रही हो भले ही रोजमर्रा की चीजें महंगी होती जा रही हो और बेशक भविष्य की बचत के लिए एक गाड़ी कमाई में से एक हिस्सा मुश्किल से ही बच पाता हो। लेकिन मजाल क्या है हमारे सियासत दानों को पैसों की किल्लत हो जाए उन पर तो मां लक्ष्मी सिर्फ बरस नहीं रही बल्कि बादल बनकर फट रही है। राजनीतिक दलों पर पैसों की घनघोर वर्षा हो रही है जिसे सुनेंगे तो आप भी हक्के बक्के रह जाएंगे। राजनीतिक दलों को चंदे के तौर पर कितना चढ़ावा चल रहा है वह आप को सन्न कर देने के लिए काफ़ी है।
चुनावी बॉण्ड को लेकर आखिर क्यों छिड़ा है विवाद ?
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एक रिपोर्ट के मुताबिक राजनीतिक दलों को 10,000 करोड़ से भी ज्यादा का चंदा मिला है। इस रिपोर्ट में केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाले आर्थिक मामलों के विभाग DA के ताजा आंकड़ों से इस बात की तस्दीक हुई है कि अब तक चुनावी बोर्ड की बिक्री 10 हजार करोड़ के आंकड़े को भी पार कर गई है। द वायर की रिपोर्ट में आरटीआई कार्यकर्ता कोमोडोर लोकेश बत्रा को मिली सूचना के आधार पर बताया गया है कि 1 से 10 जुलाई के बीच चुनावी बांड के 21वें चरण में बिक्री में यह आंकड़ा सामने आया है।
राजनीतिक दलों को कौन दे रहा है हजारों करोड़ का चंदा
आपको सरल शब्दों में बता दें कि चुनावी बॉण्ड वह बॉण्ड होते हैं जिसके जरिए कोई भी अपनी पसंदीदा पार्टी को चंदे की रकम दे सकता है। इस चुनावी बॉण्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई है जिस पर अभी इस सुनवाई होनी बाकी है। आपको बता दें कि चुनावी बॉण्ड का मुद्दा शुरू से ही विवादों में रहा है इसे लेकर अलग-अलग तरह की राय रही है। चुनावी बॉण्ड योजना को वित्त विधेयक 2017 के साथ पेश किया गया था जबकि से साल 2018 की शुरुआत में ही अधिसूचित भी किया गया था। चुनावी बॉण्ड को लेकर शुरू से ही चर्चा रही है कि इससे पारदर्शिता को बढ़ावा मिला है इसे लेकर कहा जाता है कि इससे राजनीतिक दलों को गुमनाम तरीके से दिए जाने वाले चंदे की प्रवृत्ति बढ़ी है क्योंकि इससे चंदा देने वाले शक्स की जानकारी गुमनाम बनी रहती है।
चुनावी बॉण्ड के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में होनी है सुनवाई
द वायर की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि चुनावी बॉण्ड के जरिए सबसे ज्यादा चंदे की राशि सत्तारूढ़ बीजेपी को मिली है। आपको बता दें कि साल 2017 में चुनावी बॉण्ड को लेकर चुनाव आयोग ने भी चिंता जाहिर की थी। जबकि साल 2018 में इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं भी दायर की गई थी इस पर रोक लगाने की मांग एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म एडीआर की ओर से दायर किया गया था इस पर सुप्रीम कोर्ट दो बार अंतरिम रोक लगाने से भी इंकार कर चुकी है। इसे लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई होनी बाकी है इस पर अप्रैल महीने में चीफ जस्टिस एंड वी रमन 9 वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को बताया था कि कोर्ट चुनावी बांड के मामले पर सुनवाई करेगी ऐसे में अब इंतजार और लिखा है सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई और इस संबंध में दिए जाने वाले फैसले पर टिकी हुई है।