उत्तर प्रदेश मे तीसरे चरण का मतदान हो चुका है, 20 फरवरी को तीसरे चरण में यादव बेल्ट और बुंदेलखंड के इलाकों की सीटों पर हुए मतदान में पिछली बार से कम उत्साह दिखा। चुनाव आयोग के मुताबिक तीसरे दौर की 59 सीटों पर 60.46 फीसदी मतदान रहा जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव मे यह आकड़ा 62.21 फीसदी था। तीसरे चरण में बुंदेलखंड इलाके की सीटों पर चुनाव की वोटिंग ट्रेंड को देखे तो पिछले विधानसभा चुनाव से 2 फ़ीसदी वोटिंग कम हुई 2012 की तुलना में 2017 में वोटिंग में 2 फ़ीसदी का इजाफा हुआ था। पिछले चुनाव में 59 सीटों का वोटिंग फ़ीसदी बढ़ने से भारतीय जनता पार्टी को जबरदस्त फायदा और विपक्षी पार्टियों को नुकसान हुआ था, वह इस बार 2012 की तरह 13 वोटिंग ट्रेंड रहा। तीसरे चरण का मतदान 20 फरवरी को हुआ था, हाथरस जिले में 63.15 फीसदी फिरोजाबाद में 65.15 फीसदी मतदान हुआ था। कासगंज में 62.89 फीसदी एटा में 65.78 फीसदी मैनपुरी में 63.61 फीसदी फर्रुखाबाद में 59.10 फीसदी कन्नौज में 61.99 फीसदी और इटावा में 61.35 फीसदी मतदान हुआ था। विश्लेषण करने पर साफ पता चलता है कि वोटिंग फीसदी बढ़ने से विपक्ष को लाभ पहुंचा है, 2017 में इन 59 में से 49 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को जीत मिली थी।
2017 चुनाव के मुकाबले इस बार कम हुई वोटिंग फीसदी
जबकि समाजवादी पार्टी को सिर्फ 8 सीटों पर ही जीत मिली थी, बसपा और कांग्रेस को 1-1 सीटों पर जीत मिली थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में इन 59 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को 8 समाज वादी पार्टी को 37 बसपा को 10 और कांग्रेस को 3 सीटों पर जीत मिली थी। इस तरह से 2017 में भारतीय जनता पार्टी को 41 सीटों का फायदा मिला था, तो समाजवादी पार्टी को 29 कांग्रेस को 2 और बसपा को 9 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। 2007 के विधानसभा चुनाव में इन 59 सीटों पर 50 फीसदी के करीब वोटिंग हुई थी, जिसमें बसपा को 28 समाजवादी पार्टी के 17 और भारतीय जनता पार्टी को 7 सीटें मिली थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में 10 वीं सदी वोटिंग का इजाफा हुआ था, समाजवादी पार्टी को 10 सीटों का फायदा तो बसपा को 21 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। पिछले तीन विधानसभा चुनाव की वोटिंग से साफ होता है कि वोटिंग फीसदी के बढ़ने से विपक्ष को फायदा मिला तो सत्ता पक्ष को नुकसान हुआ। इस बार की वोटिंग लगभग 2012 के चुनाव के बराबर रही है।
2017 में चाचा भतीजे के बीच हुई लड़ाई से पार्टी को हार का खामियाजा भुगतना पड़ा था?
तीसरे चरण में समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव के लिए अपने गढ़ में पार्टी के खोए हुए सियासी आधार को दोबारा से पाने का चैलेंज है। इसी लिए अखिलेश यादव कुल मैनपुरी जिले के करहल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े हैं, इसके साथ ही शिवपाल यादव नें जसवंत नगर सीट से चुनाव लड़ा। 2017 मे अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच चली लड़ाई में समाजवादी पार्टी को हार का खामियाजा भुगतना पड़ा था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। चाचा भतीजे के साथ है, और इसका फायदा समाजवादी पार्टी को मिल सकता है