दोस्तों साल 2007 में एप्पल ने अपना पहला आईफोन लॉन्च किया जिसने पूरे स्मार्टफोन इंडस्ट्री को बदल कर रख दिया था। और इसका सबसे बड़ा श्रेय जिस व्यक्ति को दिया जाता है, उसका नाम है स्टीव जॉब्स आज हम स्टीव जॉब्स को एक जबरदस्त बिजनेस लीडर और एक जीनियस के रूप में याद करते हैं। और शायद उनकी यही खूबी उनकी इतनी कम उम्र में उनके मारने का वजह बना यह सब कैसे हुआ हम आज कि इस रिपोर्ट में जानने वाले हैं। दोस्तों स्टीव जॉब्स का जन्म 24 फरवरी 1995 में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में हुआ था. और आपको जानकर हैरानी होंगी जन्म के समय उनका नाम अब्दुल लतीफ जंडली था, दरअसल उनके पिता का नाम अब्दुल फतह जंडली था, जो सीरिया से ताल्लुक रखते थे, जबकि उनकी माँ जोआन शिबल सिम्पसन जर्मन महिला थी। उन दोनों की मुलाक़ात पढ़ाई के दौरान हुई थी, जिसके ये दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और शादी सें पहले ही स्टीव जॉब्स की मां प्रेगनेंट हो गई वो दोनों उस अनवांटेड बच्चे से छुटकारा पाना चाहते थे। इसलिए उन दोनों ने ऑपरेशन करवाने का फैसला लिया था, लेकिन उस समय अमेरिका के अंदर ऑपरेशन करवाना गैरकानूनी था. इसी लिए वें चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाये।
ऐसे में इन दोनों नें यह तय किया की वो अपने इस बच्चे को जन्म देकर किसी अच्छी फैमिली को को दें देंगे। इस तरह स्टीव जॉब्स का जन्म एक अनवांटेड चाइल्ड के रूप में हुआ जिन्हें जन्म के कुछ समय बाद जिन्हे सैन फ्रांसिस्को में रहने वाले पॉल जॉब्स और उनकी पत्नी क्लारा जॉब्स को दें दिया गया। इसके कुछ समय बाद में स्टीव जॉब्स के बायोलॉजिकल पेरेंट्स अब्दुल फतह जंडली और जोआन शिबल सिम्पसन नें एक दूसरे सें शादी कर ली और एक बेटी यानी स्टीव की बहन मोना सिम्सन को जन्म दिया। दोस्तों स्टीम और मोना दोनों हमेशा एक दूसरे के क्लोज रहे लेकिन स्टीव ने अपने बायोलॉजिकल पेरेंट्स के साथ कभी कोई रिश्ता रखा ही नहीं साल 1959 में स्टीव जॉब्स की फैमिली सैन फ्रांसिस्को को छोड़कर कॉलीफॉरनिया के माउंटेन व्यू शहर में शिफ्ट हो गई दोस्तों उसमें बदलती हुई टेक्नोलॉजी के साथ माउंटेन व्यू इलेक्ट्रॉनिक सेंटर बनता जा रहा था। शायद इसीलिए स्टीव जॉब्स को बचपन से ही इलेक्ट्रॉनिक में दिलचस्पी थी. लेकिन स्टीव जॉब्स के साथ प्रॉब्लम यह था कि उनका पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था, साथ ही स्कूल के दूसरे स्टूडेंट उन्हें काफी तंग भी किया करते थे।
स्टीव जॉब्स ने एप्पल कंपनी की शुरुआत अपने दोस्त स्टीव वोजनियाक के साथ की?
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हालांकि कुछ समय बाद स्टीव जॉब्स के पेरेंट्स लॉस अल्टोस में शिफ्ट हो गए और इसी के चलते उनका स्कूल भी चेंज हो गया और इसी स्कूल में स्टीव के बने एक नये दोस्त ने उनकी मुलाकात स्टीव वोजनियाक नाम के एक लड़के से कर वाई जो कुछ समय पहले उसी स्कूल से पास आउट हुआ था, दरअसल स्टीव जॉब्स की तरह वोजनियाक को भी इलेक्ट्रॉनिक्स से बेहद प्यार था और इसी के चलते इन दोनों में गहरी दोस्ती हो गई। दोस्तों में आपकी जानकारी के लिए बता दें कि स्टीव जॉब्स ने आगे जाकर अपने दोस्त वोजनियाक के साथ मिलकर ही एप्पल कंपनी की शुरुआत की थी। स्टीव जॉब्स की स्कूल लाइफ की बात करें तो भाभी के दौरान उन्होंने कुछ समय एचपी कंपनी में इंटरशिप भी की लेकिन हाई स्कूल पूरा होने के बाद वह कैंपस जॉब पाने में नाकामयाब रहे, इसके बाद उन्होंने ORAGN के RID कॉलेज में एडमिशन लिया लेकिन सिर्फ एक सेमेस्टर के बाद वह अपने पेरेंट्स को बिना बताए इस स्कूल से ड्रॉप आउट हो गए असल में उन्हें कॉलेज के कई सारी क्लासेस बिल्कुल व्यर्थ लगती थी। साथ ही ये कॉलेज काफ़ी महंगा भी था, जिसकी फीस भरना उनके पेरेंट्स के लिए काफी मुश्किल हो गया था, और ऐसे में उन्होंने कॉलेज को छोड़ना ही बेहतर समझा।
हालांकि कॉलेज से ड्रॉप आउट होने के बाद भी वो कैंपस के आस -पास ही रहते रहे और जो भी क्लास उन्हें इंटरेस्टिंग लगती वो उसको अटेंड कर लिया करतें इसी दौरान उन्होंने कैलीग्राफी की क्लासेस भी ली जहा उन्होंने इंग्लिश वर्ड्स को खूब सूरत तरीके से लिखने की कला सीखी। और उनकी यही कल बाद में कंप्यूटर्स के अंदर अलग तरह की टाइपोग्राफी बनाने के काम आई दोस्तों ये स्टीव जॉब्स की लाइफ का वह समय था। जो वो अपने दोस्तों के हॉस्टल रूम में फर्श पर सोते थे, वे पैसों और खाने का इंतजाम करने के लिए कोको कोला की बोतल रिसाइकल करते थे। साथ ही हर संडे को कैंपस के पास में मौजूद हर एक मंदिर में जाकर मुक्त क्या खाना खाया करते थे, एक बार स्टीव जॉब्स के दोस्त वोजनियाक ब्लू बॉक्स नाम की एक हैकिंग डिवाइस लेकर उनके पास आए जिसके जरिए लोग मुफ्त में अनलिमिटेड इंटरनेशनल कॉल कर सकते थे। जो कि स्टीव जॉब्स पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए पागल थे. इसीलिए उन्होंने कुछ ही दिनों में वोजनियाक के साथ मिलकर अपनी खुद की ब्लू बॉक्स डिवाइसेस बनाकर उन्हें भचना शुरू कर दिया। हालांकि यह डिवाइस को बनाने का उन्हें ये फायदा हुआ, कि इलेक्ट्रॉनिक्स को लेकर उनका कॉन्फिडेंस काफी ज्यादा बढ़ गया और आगे चलकर उनका यही कॉन्फिडेंस एप्पल को इस्टैबलिश्ड करने में काम आया हालांकि एप्पल को फाउंड करने से पहले स्टीव जॉब्स ने अमेरिका की गेमिंग कंपनी अटारी में भी काम किया था। जहां साल 1974 में उन्हें टेक्नीशियन की जॉब दी गई थी, साथ ही उनका भारत विजिट करने का सपना भी अटारी कंपनी की वजह से ही पूरा हो पाया था। दरअसल अटारी की तरफ से स्टीव जॉब्स को ज़ब एक ट्रिप पर जर्मनी भेजा गया तब उन्होंने रिक्वेस्ट की उन्हें जर्मनी का वन वे टिकट करवा कर रिटर्न टिकट के पैसे कैश में दे दे। दोस्तों अटारी कंपनी ने उनकी बात मान ली जिसके बाद एक स्टीव जर्मनी में अपना काम निपटा कर उन पैसों की मदद से अमेरिका लौटने के बजाये भारत आ गए दरअसल स्टीव जॉब्स भारत में आकर स्टीव पूरी तरह से भारत के कल्चर में ढल गए। यहां रहते हुए वें हमेशा ढीले ढाले कपड़े पहनते और गांव के लोगों की तरह अक्सर नंगे पांव चला करते थे।
स्टीव जॉब्स का भारत आना उनके लिए लाइफ चेंजिंग साबित हुआ?
दोस्तों यह नंगे पांव चलने की आदत स्टीव जॉब्स के साथ हमेशा रहीl क्योंकि अक्सर उन्हें उनकी ऑफिस में नंगे पांव देखा जाता था, दोस्तों भारत की ये ट्रिप स्टीव जॉब्स के लिए लाइफ चेंजिंग साबित हुई थी। क्योंकि भारत में रहकर उन्होंने इस चीज को जाना की इंसान का अंतर गया उसकी बुद्धि और समझ बुझ से कहीं ज्यादा पावर फुल होता है। भारत से जो पावरफुल ज्ञान लेकर वह अपने साथ अमेरिका लौटे उसी ने उन्हें 1976 में स्टीव वोजनियाक और रोनाल्ड बैन के साथ मिलकर एप्पल कंपनी को शुरू करने के लिए प्रेरित किया था। और दोस्तों यह बात खुद उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कही है. शुरुआत में स्टीव जॉब्स के घर का गैराज उनकी इस कंपनी का हेड क्वार्टर हुआ करता था। और इसी गैराज में उन्होंने एप्पल का पहला कंप्यूटर एप्पल वन बनाया था, ये कम्प्यूटर आज के मॉडल कम्प्यूटर से बल्कुल अलग है। जहा तो इसमें ना तों कोई कीबोर्ड था, ना ही कोई स्क्रीन सही मइनों में एक किट की तरह था। जिसे लोग अपने हिसाब से किसी भी तरह से कस्टमाइज कर सकते थे। दोस्तों उस समय टेक्नोलॉजी का सारा काम स्टीव वोजनियाक किया करते थे, जबकि स्टीव जॉब्स टेली फोन पर कंपनी के लिए हमेशा इन इन्वेस्टर्स ढूंढते रहते थे।
इसके बाद दोस्तों एप्पल वन के बाद अगले साल इन्होने एप्पल टू को मार्केट में उतारा जो सही मायनों में एक पर्सनल कंप्यूटर के जैसा दिखता था। कुछ ही महीनों में एप्पल टू पर्सनल कंप्यूटर रिवाइवल का सिंबल बन गया जिसके चलते अगले 3 सालों में एप्पल की सेल्स 118 मिलीयन डॉलर के आंकड़े तक पहुंच गई। लेकिन एक तरफ जहा एप्पल टू बेहद कामयाब रहा वहीं कंपनी के कुछ प्रोडक्ट्स बुरी तरह से फेल जिसमें एप्पल थ्री और लीसा कंप्यूटर का नाम भी शामिल था। और ऐसा ही कुछ 1984 मे लॉन्च किए जाने वाले एप्पल मेकिंतोष के साथ भी हुआ, जो अपनी एक्सएक्सटेंटेशन पर बिल्कुल भी खरा नहीं उतरा जो कि MAKINTOSH डिवीजन के इंचार्ज स्टीव जॉब्स थे इसलिए इस असफलता का पूरा जिम्मेदार उन्हीं को ठहराया गया। जहां तक कि कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर ने उनके सभी पदों से हटा कर बाहर का रास्ता दिखा दिया था। दोस्तों ये स्टीव जॉब्स की लाइफ का बेहद कठिन समय था, लेकिन उन्होंने इसका भी सामना एक चैंपियन की तरह किया दरअसल एप्पल से रिजाइन देने के बाद उन्होंने नेक्स्ट नाम की अपनी एक सॉफ्टवेयर कंपनी शुरू की साथ ही PIXAR कंपनी के सीईओ बन गये।
दुनिया की पहली फीचर 3D एनीमेशन फिल्म टॉय स्टोरी को स्टीव जॉब्स ने लांच किया था?
यहां आपकी जानकारी के लिए बता दें, PIXAR वही कंपनी है, स्टीव जॉब्स के कार्यकाल के दौरान साल 1995 में दुनिया की पहली फीचर 3D एनीमेशन फिल्म टॉय स्टोरी को बनाई थी। इस तरह स्टीव जॉब्स एप्पल से निकलने के बाद कामयाबी की बुलंदियों को छूते रहें, लेकिन उनकी गैरमौजूदगी में एप्पल की हालत बद से बत्तर हो गई। यहां तक कि 1997 में यह कंपनी बहन करप्ट होने के कगार पर पहुंच गई थी, आखिरकार कंपनी को बचाने के लिए स्टीव जॉब्स को वापस एप्पल का सीईओ बनाया गया दोस्तों इस बार स्टीव जॉब्स नेक्स्ट कंपनी का OS ऑपरेटिंग सिस्टम को भी लेकर आए थे, और बाद में फिर यही OS मैं OS के नाम से जाना गया दोस्तों इस नए ऑपरेटिंग सिस्टम की मदद से स्टीव जॉब्स इन एप्पल को डूबने से बचा लिया था। और इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक ऐसे ऐसे कमाल की जिन्होंने टेक्नोलॉजी की दुनिया को ही बदल कर रख दिया। दरअसल साल 2001 में स्टीव जॉब्स ने आईपॉड लॉन्च किया जिसने ना सिर्फ लोगों की म्यूजिक सुनने का तरीका बदला बल्कि पूरी म्यूजिक इंडस्ट्री को बदल कर रख दिया। इसके बाद साल 2007 में दुनिया के सामने आई फोन लेकर आये।
56 साल की उम्र में स्टीव जॉब्स का हो गया था, देहांत?
जिसे आज भी दुनिया का सबसे सक्सेसफुल लॉन्च माना जाता है। क्योंकि आईफोन ने रातों -रात स्मार्टफोन इंडस्ट्री के पूरे गेम को चेंज कर दिया था, दोस्तों ये तों सिर्फ शुरुवात था, जिसके बाद स्टीव जॉब्स और भी आगे जाना था। लेकिन अब उनकी सेहत ने उनका साथ छोड़ना शुरू कर दिया था, दरअसल स्टीव जॉब्स की हेल्थ प्रॉब्लम 2003 में ही शुरू हो गई थी। लेकिन एक बार जब उनकी किडनी में स्टोन के चलते उनका सीटी स्कैन किया गया तब डॉक्टर्स को पता चला उन्हें सिर्फ किडनी स्टोन ही नहीं बल्कि न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर भी था। जो कि एक तरफ का रियार पेनक्रियाज कैंसर होता है, दोस्तों इस स्टीव जॉब्स ने अपनी इस हालत का जिम्मेदार अपने बिजी शेड्यूल को बताया था। असल में स्टीव जॉब्स ने काफी लंबे समय तक एक साथ फिक्सर और एप्पल दोनों कंपनियों को संभाला जिसके चलते वें सुबह 7:00 घर से निकल कर शाम 8:00 बजे वापस पहुंच पाते थे। इसके अलावा स्टीव जॉब्स अपनी सेहत को लेकर काफी लापरवाह थे, यहां तक कि अपने न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर सर्जरी को वो 9 महीने तक टालते रहे थे। लेकिन बाद में जब उनकी सेहत ज्यादा खराब हुई तब उन्हें काफी पछतावा भी हुआ लेकिन कई साल लड़ने के बाद वो इस जानलेवा बीमारी को हरा नहीं पाए जिसके चलते 5 अक्टूबर 2011 के दिन दोपहर 3:00 बजे के आस -पास 56 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया।