पश्चिमी देशों की तरह भारत में लिव इन रिलेशनशिप का प्रचलन बढ़ा है। बड़े शहरों में कई लोग ऐसे मिल जाएंगे जो लिव इन रिलेशनशिप में रहतें हैं। अब सवाल ये उठता है कि लंबे समय तक लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले पुरुष और महिला कें रिश्ते को क्या नाम देंगे? सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक़ लम्बे समय तक साथ रहनें वालों का रिस्ता क़ानून कें मुताबिक विवाह जैसा हीं होगा। इस रिश्ते सें जन्मे बच्चे कों पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी मिलेंगी. का मतलब है कि बेटे को पैतृक संपत्तियों से वंचित नहीं किया जा सकता हैं। समाचार एजेंसी PTI के रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस एस अब्दुल नसीम और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि एक महिला और पुरुष लम्बे समय तक पति-पत्नी कें रूप में रहतें हैं तों उसे विवाह हीं माना जायेगा। इस तरह के अनुमान साक्ष्य अधिनियम की धारा 144 के तहत लगाया जा सकता है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के 2009 कें एक फैसले कें खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया हैं।
बच्चों कों पैतृक संपत्ति कों लेकर SC का बड़ा फैसला !
दरअसल केरल हाईकोर्ट नें एक कपल की याचिका पर अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि लम्बे समय तक कपल कें साथ रहनें कें बाद पैदा हुए एक बच्चें कों पैतृक संपत्ति में हिस्सा दिया जा सकता है। केरल हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि कागजातों सें साबित होता है कि पैदा हुआ बच्चा याचिकाकर्ता का पुत्र हैं। यह साबित नहीं होता है कि दोनों महिला पुरुष लम्बे समय तक साथ रहें हैं. इससे यह पता नहीं चलता हैं कि बच्चा अवैध हैं। लिहाजा उसे संपत्ति में हिस्सेदारी नहीं मिल सकती है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करते हुए कहा कि ज़ब महिला-पुरुष नें लम्बे समय सें साथ रहनें का दावा किया है. तों कोर्ट उसे मानेगा कि वह विवाह के बाद यें साथ में रह रहे हैं। इस तरह के रिश्ते सें जन्मे पुत्र को संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है।