वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) का विवाद इन दिनों चर्चा में है सर्विस से लेकर सील करने तक की कार्रवाई हो चुकी है दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे है। फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है दोनों तरफ के दावों के बीच इतिहास के पन्ने भी खुलते दिख रहे हैं कोर्ट के पुराने फैसलों का जिक्र हो रहा है तो उस दौर में बने कानून की याद दिलाई जा रही है ताजा चर्चा इलाहाबाद हाईकोर्ट की 1937 में दिए गए उस फैसले को लेकर है जिसमें क्या कुछ कहा गया था उसको हम आपको बताएंगे।
Gyanvapi Masjid पर क्या है कोर्ट का फैसला।
तो क्या था ,ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) पर हाई कोर्ट का 1937 का फैसला इस पर विस्तार से बात करते है। तो 1936 में पूरे ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) परिसर में नमाज पढ़ने के अधिकार को लेकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जिला न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया था दावेदारों की ओर से 7 गवाह और ब्रिटिश सरकार की ओर से 15 गवाह पेश किए थे। 15 अगस्त 1937 को ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) के अलावा अन्य ज्ञानवापी परिसर में नमाज पढ़ने के अधिकार को नामंजूर कर दिया गया। 1937 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद के ढांचे को छोड़कर बाकी सभी जमीनों पर वाराणसी के व्यास परिवार का हक बताया ,और उनके पक्ष में फैसला भी दिया तब से वर्षों तक मस्जिद के तहखाने की देखरेख करता था ऐसा दावा है व्यास परिवार तहखाने में जा कर पूजा करता था उसी तहखाने में आज भी कई चीजों के मंदिर से जुड़े होने का भी दावा किया जाता है।
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Gyanvapi Masjid के तहखाने का मालिकाना किसको मिला था ?
बनारस के तत्कालीन करेक्टर का नक्शा भी इस फैसले का हिस्सा बना था जो 1937 में किया गया था जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) के तहखाने का मालिकाना हक व्यास परिवार को मिला था हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव खालिद सैफुल्लाह रहमानी का दावा है कि उस फैसले में कोर्ट ने गवाही और दस्तावेजों के आधार पर फैसला दिया था कि पूरा परिसर मतलब ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) कॉन्प्लेक्स मुस्लिम वक्त का है मुस्लिमों के यहां नमाज पढ़ने का अधिकार है रहमानी का दावा की उस फैसले में कोर्ट ने मंदिर और मस्जिद का क्षेत्रफल भी तय कर दिया था इसके अलावा अदालत ने वजू खाने को मस्जिद की संपत्ति माना था इसी वजू खाने में अब हिंदू पक्ष शिवलिंग मिलने का दावा कर रहा है।
ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) मामले में होते हंगामे के बीच मुस्लिम पक्ष लगातार प्लेस ऑफ़ वरशिप एक्ट 1991 और 1937 में हाईकोर्ट के इस फैसले का जिक्र करते हुए कह रहा है कि इस मामले में कोई फैसला नहीं दिया जा सकता। वह हिंदू पक्ष की दलील है कि यह कानून इस मामले में लागू ही नहीं होता क्योंकि मस्जिद को मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था। फिलहाल इस खबर में इतना ही।
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