मैं भारत की स्वतंत्रता और अखंडता को बनाए रखूंगा। हमें इस लाइन को गौर से सुनना चाहिए क्योंकि यह वही लाइन है जो भारत के संविधान में तब नेहरू जोड़ी थी जब देश के दक्षिण में राज एक नहीं देश की मांग कर रहे थे। और देश एक तरह की आजादी के बाद फिर से बंटवारे वाली स्थिति में आ गया था, तो इस वक्त नेहरू ने ही संविधान मैं संशोधन करवा कर ऐसे बदलाव करवाये कि भारत गणराज्य का कोई भी हिस्सा दोबारा कोई अलग राष्ट्र की मांग नहीं कर सकता है। और यह थी भारत की अखंडता को बनाए रखने की वह पहल जिस वजह से आज भारत इतनी विविध संस्कृति भाषा और धर्म को अपने साथ रख कर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश बना हुआ है। यह महज एक घटना थी, लेकिन आज कि इस रिपोर्ट में हम आपको यही बतानें वाले है. अगर नेहरू ना होते तो भारत का चेहरा कैसा होता जिसमें नेहरू की सार्थकता निरूकता दोनों है। आज हमारे देश में लोगों को बहुत सी नई नई जानकारियों के हिसाब से यह सब समझाया जाता है कि नेहरू ने गांधी की चमचागिरी करके प्रधानमंत्री पद को हासिल कर लिया था, यह बात कितनी गलत है यह आप इसी बात से समझ सकते हैं कि जब भारत के प्रधानमंत्री पद का पहला चुनाव हो रहा था। ना तो गाँधी जिंदा थे ना ना ही पटेल।
लेकिन देश के पहलें प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से हर पहलू को समझने के लिए जरूरी है कि आप नेहरु के बारे में थोड़ा जान लें। पंडित जवाहर लाल नेहरु का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहबाद में हुआ था। इसके बाद 1905 में स्कूल और फिर 1907 में उन्होंने अपनी एडवोकेट की डिग्री खत्म की सही मायनों में पंडित जवाहर लाल नेहरू सिर्फ भारत की आजादी के लिए यह कह ले उसका हिस्सा बनने के लिए भारत आए थे। और आते ही भारत को आजाद कराने की जद में लग गए जिसके चलते वह देश की आजादी के लिए काम करने वाली इंडियन नेशनल कांग्रेस के मेंबर बन गए यहीं से शुरू होता है पंडित जवाहर लाल नेहरु का आजादी का लड़ाई का वों योगदान जिसके बिना देश आजाद तो भले रहता लेकिन शायद आजादी हमें बहुत बाद में मिलती। साल 1912 मे कांग्रेस के लिए फंड इकट्ठा करने में लग गये, जिसके बाद उन्होंने भारत में मजदूरों पर अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ एक नई मुहिम शुरू कर दी थी।
नेहरू ने देश को एक नई पहचान दिलाई…?
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जिसने पंडित जवाहर लाल नेहरू को देश में एक नई पहचान दिलाई 1916 में जब अंग्रेजों द्वारा भारत को आजादी के बदले कुछ रियायत देने की बात कही गई थी, तब वह पंडित जवाहर लाल नेहरु ही थे, जिन्होंने पूर्ण स्वराज्य सिक्कम कुछ ना लेने की मांग की थी। जिसके बाद तो आजादी की लड़ाई नें आग ही पकड़ ली थी, क्योंकि देश को एक ऐसा नया नेता मिल गया था, जिसकी सोच में इतनी दूरदर्शिता थी कि उसे आजाद भारत और उसका लोकतंत्र साफ नजर आ रहा था।इसके बाद 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने के कारण पंडित जवाहर लाल नेहरू पहली बार जेल गए लेकिन जल्दी जेल से बाहर आ गये। जेल से छूटने के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस के साथ मिलकर भारत की आजादी के लिए बाहरी देशों से समर्थन जुटाना शुरू कर दिया था। जिसका आगे चलकर बहुत फायदा हुआ क्योंकि इसी की वजह से अंग्रेजों पर एक वैश्विक दबाव बनना लगा था, इसके बाद आजादी की लड़ाई में ऐसे ही अहम रोल अदा करने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू जब भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बनते हैं. तब अंग्रेज उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं।
और करीब 1041 दिनों तक जेल में रखतें बात अगर जेल की करें तो पंडित जवाहर लाल नेहरू नें कुल 9 साल जेल में देश को आजाद कराने के लिए गुजारे थे। और शायद वह 9 ही साल थे, जो पंडित जवाहर लाल नेहरू को और मजबूत बना रहे थे। और देश आजादी की राह पर बढ़ चला था, और अंत में आजादी मिली भी। यहीं से शुरू होती है पंडित जवाहरलाल नेहरु की वह भूमिका जिसने आजाद भारत को भूख दंगे और अकाल की पीड़ा से मुक्ति की ओर राह दिखाई। क्योंकि आजादी के बाद देश बंटवारे का दर्द झेल रहा था, कश्मीर की बगावत और कुछ वक्त पहले बंगाल में पड़े भीषण अकाल से देश संघर्ष कर रहा था। जिसे देख कर दुनिया यही कह रही थी, कि भारत कभी डेमोक्रेटिक कंट्री नहीं बन पाएगा लेंकिन नेहरू ने सब को गलत साबित करते हुए भारत को लोकतंत्र बनाने के लिए खुद को लगा दिया और देश को एक मजबूत संविधान देने के साथ ही साथ आजादी के तुरंत बाद देश में एक चुनाव आयोग का भी गठन किया ताकि पूरा लोकतंत्र लोगों के हाथ से ही चल सकें।
नेहरू ना होते तो आज भारत पाकिस्तान की तरह होता?
सोचिए अगर पंडित जवाहर लाल नेहरु ना होते संभव था शायद इस देश का लोकतंत्र साथ ही आजाद हुए पाकिस्तान की तरह होता। जहां तरक्की इस बात से राह पर जाती है. की आतंकी कितने बने इसके अलावा अगर भारत को आधुनिक बनाने की बात करें तो शिक्षा या विश्व की बराबरी करने के लिए विश्वस्तरीय शिक्षा को भारत लाना बेहद जरूरी था। जिसका पूरा श्रेय पंडित जवाहर लाल नेहरू को ही दिया जाना चाहिए क्योंकि 1951 में पंडित जवाहर लाल नेहरू नें देश को जो नये मंदिर के नाम पर दिया था, उसका नाम था आईआईटी 1951 में उन्होंने आईआईटी खड़गपुर बनवा कर देश को पहला इंजीनियरिंग कॉलेज दिया। जो कि बिल्कुल विश्वस्तरीय था, और जिस से निकलने वाले इंजीनियर्स नें ही एक तरह से भारत को आधुनिक रूप दिया। इसके अलावा विश्वस्तरीय मेडिकल स्टडीज के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का गठन किया साथ ही 1961 में कोलकाता में देश का पहला मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट आई आई एम बनवाया। अब आप ही सोचिए अगर पंडित जवाहर लाल नेहरु नहीं होते तो देश के पास ये सारी चीजे आजादी के तुरंत बाद कैसे होती दोस्तों इसके अलावा जब अमेरिका और उसके जैसे बड़े देश न्यूक्लियर पावर न्यूक्लियर बम के साथ पूरी दुनिया को डरा रहे थे। तब ये पंडित जवाहर लाल नेहरु ही थे, जिन्होंने आजादी के तुरंत बाद भाभा को DAE का सेक्रेटरी नियुक्त करके देश को आजादी के बाद कुछ ही सालों में एक न्यूक्लियर पावर भी बना दिया।
वह भी बिना किसी दूसरे देश की मदद से इसमें पंडित जवाहर लाल नेहरु की दूरदर्शिता ही थी। कि उन्हें लगा था, की अगर भारत न्यूक्लियर पावर देश नहीं होता तो बाकी शक्तिशाली देश भारत को अपने अधीन बनाने की कोशिश करने लगते जैसे आजादी के कुछ सालो तक अमेरिका नें पाकिस्तान को कर रखा था।इसके अलावा BHILAI STEEL PLANT, BOKARO STEEL PLANT जैसी फैक्ट्रियां जिन्होंने नें देश को मजबूत बनाने के लिए स्टील दिए वों भी पंडित जवाहर लाल नेहरु की ही देन है। अब अगर बात कश्मीर की कर ले तो शायद ही आपको नहीं पता होगा कि वों पंडित जवाहर लाल नेहरू ही है. जिनकी वजह से आज कश्मीर भारत का हिस्सा है। क्योंकि जब बटवारा हुआ था, तब कहा गया था. कश्मीर जिन इलाकों में हिंदू ज्यादा है. वों भारत का हिस्सा और जिन इलाकों में मुसलमान ज्यादा होंगे वह पाकिस्तान का हिस्सा होगा। और पटेल जो सारी रियासतों का विलय कर रहे थे, उन्होंने भी इस बात का स्वीकार कर लिया था।
नेहरू की वजह से आज कश्मीर भारत का हिस्सा है?
लेकिन पंडित जवाहर लाल नेहरू को यह पता था कि कश्मीर के बिना भारत का मुकुट नहीं मिल पाएगा। और सूफी जैन बौद्ध विचारों और विविध सभ्यताओं वाला इतना खूबसूरत कश्मीर देश से अलग हो जाएगा, इसके लिए उन्होंने ही कश्मीरी मुसलमानों को भारत के साथ जोड़ने के लिए कश्मीर में रहकर इंडियन नेशनल कांग्रेस का गठन किया। और शेख अब्दुल्ला उस समय कश्मीर के बहुत बड़े मुस्लिम नेता थे, उन्हें अपने साथ जोड़ लिया जिस वजह से कश्मीर कि मुस्लिम जनता भी भारत का हिस्सा बनने को तैयार हुई और कश्मीर भारत का एक अनोखा हिस्सा बन गया। हालांकि इन्हीं चाचा नेहरू के कुछ ऐसे पहलू भी है जिन्हें उनके नेगेटिव प्वाइंट में गिना जा सकता है जैसे कि पंडित जवाहर लाल नेहरू का चीन के लिए फ्रेम देश को ऐसा झेलना पड़ा की आजादी के बाद जब स्थिति सुधरी भी नहीं थी, तभी भारत को चीन के खिलाफ एक भारी जंग में हार का सामना करना पड़ा। जिससे भारत की पूरे विश्व में थू थू हुई थी, इसके अलावा वह नेहरू ही थे, जिनकी गलती के कारण आज भारत यूनाइटेड नेशन का अस्थाई सदस्य नहीं बन सका।
अगर उस समय नेहरू की जगह कोई और होता तो संभव था कि आज यह नहीं होता पंडित जवाहर लाल नेहरु की वजह से एक तरह देश लोकतंत्र की परिभाषा दी गई थी। वह कहीं ना कहीं राजतंत्र की तरह एक ही परिवार के हाथों में सिमट कर रह गया था जब कहीं ना कहीं लोकतंत्र पर एक प्रहार की तरह साबित हुआ। तो दोस्तों कहते है ना हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं. ऐसे पंडित जवाहर लाल नेहरू का जीवन भी दो पहलुओं के बीच झूलता रहा और आज उनकी मौत के इतने सालों बाद भी वों हर दिन चर्चा का विषय बने रहते हैं। किसी के लिए आदर्श बनकर तो किसी के लिए देश की दबाने वाली नाव के पतवार बनकर कोई कहता है नेहरू ने संभाल लिया है. तो कोई कहता है पंडित जवाहर लाल नेहरु ही देश की हालत को कुछ इस कदर बिगाड़ कर चले गए हैं कि आज तक सरकार उसका हर्जाना भुगत रही है। वैसे आप को क्या लगता क्या वाकई इतने सालों के बाद भी देश के बिगड़ते हालातों का जिम्मा पंडित जवाहर लाल नेहरू के सिर डाल देना कितना सही है। कि पूर्व प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के बारे में क्या राय हैं कमेंट बॉक्स में हमारे साथ जरूर साझा करें